दस तीखे सवाल……..श्री सम्मेद शिखरजी
“भारतवर्षीय दिगम्बर जैन तीर्थक्षेत्र कमेटी” की चुनाव व्यवस्था पर जैन समाज के “दस तीखे सवाल”
(1) “भारतवर्षीय दिगम्बर जैन तीर्थक्षेत्र कमेटी” का सदस्य बनने के लिए 11 हज़ार की ही सदस्यता क्यों है ? ऐसी सदस्यता राशि क्यों नहीं है कि सभी समर्पित जैनधर्म रक्षक उसके सदस्य बन सकें ?
(2) अध्यक्ष बनने के लिए वोट की आवश्यकता की पूर्ति के लिए करोड़पति उम्मीदवारों द्वारा स्वयं करोड़ों रुपए ख़र्च करके …. ग्यारह -ग्यारह हज़ार रुपए की राशि जमा करवाकर नए सदस्य क्यों बनाए गए ?
(3) चुनाव में मतदान केन्द्र सिर्फ “णमोकार तीर्थ क्षेत्र” महाराष्ट्र में ही क्यों बनाया गया है जबकि पूरे भारत के विभिन्न राज्यों के लोग तीर्थ कमेटी के सदस्य हैं ।
(4) जैसे देश के चुनाव में हर राज्य, हर शहर में केन्द्र होते हैं तो ऐसे ही जहां के सदस्य हैं उसी राज्य या उस शहर में मतदान केन्द्र क्यों नहीं बनाए गए ?
(5) महाराष्ट्र या दूसरे राज्य के सदस्य वोट देने के लिए स्वयं की व्यवस्था से “णमोकार तीर्थ” पहुंचेंगे या तीर्थ कमेटी या किसी विशेष व्यक्ति द्वारा उनकी आने-जाने,ठहरने आदि की सभी खर्च सहित व्यवस्था की तैयारियां महीनों पहले से ही हो चुकी है । और यदि किसी विशेष उम्मीदवार द्वारा लाखों रुपए खर्च करके आने-जाने, होटल में ठहरने की व्यवस्था की जा रही है तो जो व्यक्ति वोट देने जा रहा है वो किसे वोट देगा ? सही उम्मीदवार को या जो व्यक्ति उसको हज़ारों रुपए खर्च करके लाया है उस उम्मीदवार को ?
(6) भारत में जैन तीर्थों की गम्भीर समस्याओं को देखते हुए , तीर्थ कमेटी के अध्यक्ष पद के लिए सिर्फ करोड़पति और व्यवसायिक होना मुख्य है जो अपने व्यापार को बढ़ाने और बचाने के चक्कर में सरकार के आगे कुछ भी न बोले और सिर्फ अध्यक्ष पद के सपने को पूरा करने की चाहत में सारे तीर्थों को खतरे में जाता देखते हुए भी, मौन रहे या अध्यक्ष ऐसा होना चाहिए जिसमें युवा जोश हो , जो जैन तीर्थों की रक्षा के लिए सरकार से भी भिड़ जाए और ऐसा आंदोलन करे कि पूरे देश की जैन और अजैन सभी लोगों को जैन तीर्थों की चिंता हो और वे उस युवक के साथ खड़े रहें । उदाहरण पूरे भारत ही नहीं विश्व की जनता देख ही चुकी है और हम सभी भलीभांति जानते हैं कि कैसे श्री सम्मेद शिखर जी की रक्षा के लिए कुछ जुझारू, कर्मठ और समर्पित आंदोलन कर्ता , समर्पित तीर्थ रक्षक श्रावक एवं श्राविकाओं के अथक प्रयासों एवं अनशन आंदोलन ने पूरे भारत की जनता को जगा दिया था और कैसे देश का हर नागरिक चाहे वो जैन , हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई किसी भी धर्म का हो पर वो “जैन तीर्थ श्री सम्मेद शिखर जी” की रक्षा के लिए हो गया था । ऐसे युवा वर्ग जो वीर सिपाही की तरह जैन तीर्थ रक्षा के लिए, विगत अनेक वर्षों से निरन्तर समर्पित होकर प्रयास कर रहे हैं उन युवाओं के प्रयासों को यदि हम देखें तो हम गिनते -गिनते थक जाएंगे पर उन श्रावक-श्राविकाओं के समर्पण का आकलन नहीं कर पाएंगे क्योंकि वो सभी जैन सिपाही हैं , मन से सिर्फ जैनधर्म के लिए ही समर्पित थे – हैं और रहेंगे। सोचिए यदि उन समर्पित युवाओं के हाथों में “भारतवर्षीय जैन तीर्थ रक्षा कमेटी” के अध्यक्ष पद की बागडोर आ गई तो उनकी युवा शक्ति और जोश में नई प्रेरणा का संचार होगा और ऐसी युवा शक्ति अपने मतदाताओं के एक-एक वोट का हृदय से सम्मान करेगी और वो युवा शक्ति कभी भी उन्हें शिकायत का अवसर नहीं देगी बल्कि ऐसी युवा शक्ति का जैन तीर्थ रक्षा के प्रति समर्पण और संकल्प इतना मज़बूत हो जाएगा कि वो अपनी जैन तीर्थ रक्षा एवं अध्यक्ष पद जिम्मेदारी को इतना समर्पित होकर निभाएंगे कि पूरे देश में किसी की हिम्मत नहीं होगी कि वो जैन तीर्थों की ओर बुरी दृष्टि भी डाले । क्या “भारतवर्षीय दिगम्बर जैन तीर्थक्षेत्र कमेटी” एवं उसके सदस्य मतदाताओं का ये कर्त्तव्य नहीं है कि वो ऐसी युवा शक्ति को आगे लाएं जिससे अध्यक्ष पद की गरिमा में चार चांद लग जाए ? ⁉️
(7 ) पूरे भारत वर्ष में अनेक ऐसी संस्थाएं और जिनालय हैं जिनके अध्यक्ष भले ही वो बुजुर्ग हों , कई बीमारियों से परेशान हों पर वे सिर्फ इसलिए अध्यक्ष हैं क्योंकि उनके पास करोड़ों रुपए हैं भले ही उस संस्था में या जिनालय में कोई विशेष कार्य हो या न हो । भले ही समाज के युवा संस्था और जिनालय से न जुड़कर अन्य धर्म की ओर अग्रसर हो जाएं पर और भले ही समाज के हित में वहां कोई भी काम हो या न हो पर समर्पित युवाओं को वो जिम्मेदारी देना नहीं चाहते क्योंकि ये जो मान-सम्मान की चाह है वो मन से नहीं छूटती है । क्या जैन तीर्थ क्षेत्र कमेटी समर्पित युवा नेता को अध्यक्ष पद की बागडोर सौंपकर जैन तीर्थों के सुरक्षित भविष्य के बारे में विचार करती है ?
(8) अध्यक्ष पद पांच वर्ष का होता है क्या तीर्थ क्षेत्र कमेटी इस बात पर भी विचार करती है कि पांच वर्ष तक स्वस्थ शरीर और जोश के साथ जैन तीर्थों की रक्षा के लिए समर्पित कार्य युवा कर सकता है या ऐसे बुजुर्ग जो अपने स्वास्थ्य को सम्हालने की चिंता में ही रहें और जैन तीर्थ पर कोई ध्यान न दें पाएं ?
(9) “उम्र पचहत्तर की और ज़िद बचपने की” ये बात इसलिए कि भले ही जैन धर्म में मोह-माया त्यागने की बात कही गई है पर फिर भी जैन समाज में ऐसे कई बुजुर्ग हैं जिनके पास कार्य करने का कोई एजेंडा नहीं है , न ही मन में जोश है और न ही शरीर में क्षमता फिर भी बस सपना है कि “एक बार अध्यक्ष बनना है” ? क्या ऐसे लोगों के सपने पूरे करने के लिए क्या जैन समाज अपने जैन तीर्थों को संकट में डाल देगा ? ⁉️
(10) वर्तमान के उम्मीदवारों की जैनधर्म और जैन तीर्थों के लिए कार्य योजना, सुझाव, संकल्प शक्ति, जैन तीर्थों की सुरक्षा की गारंटी , जैन इतिहास की जानकारी, जैनधर्म का ज्ञान , जैन तीर्थों एवं जैनधर्म पर आई आफत के विरोध उसकी सुरक्षा आदि में किए गए के कार्य ….एवं वर्तमान में उम्मीदवार का शारीरिक स्वास्थ्य रिपोर्ट…इन सभी की जानकारी एक पुस्तिका के रूप में और एक डॉक्युमेंट्री के रूप में जैन तीर्थ कमेटी पहुंचा सकती है ताकि कोई भी वोटरों को भ्रम में न डाले और वोटर बिना किसी के दवाब में उम्मीदवार के कार्यों को देखते हुए वोट दें…..क्या जैन तीर्थ क्षेत्र कमेटी ऐसा उत्तम कार्य करेगी ?
जैन तीर्थ कमेटी के सदस्यों से भी यही निवेदन है कि कृपया जैन तीर्थ क्षेत्रों के सुरक्षित भविष्य को देखते हुए वोट दीजियेगा जो भले ही करोड़पति न हो पर पांच साल तक स्वस्थ रहे और मन से समर्पित होकर जैन तीर्थ रक्षा के लिए अपने प्राणों की भी परवाह न करे , जिसको सरकार के विरोध में बोलने के लिए अपने व्यापार के बारे में न सोचना पड़े जो जैन तीर्थों की रक्षा के लिए मर -मिटने और सरकार से जैन हित की बात मनवाने की ताक़त रखता हो और जो सच में अध्यक्ष पद की गरिमा में चार चांद लगा सकता हो ,जिसकी एक आवाज़ पर पूरे विश्व की जैन समाज का हर जैन परिवार अपने धर्म और तीर्थ की रक्षा के लिए तत्पर हो जाए ….ऐसी युवा शक्ति को ही उम्मीदवार चुनिएगा जो आपके कीमती वोट का गौरव बढ़ाए और जैन तीर्थों को कुदृष्टियों से बचाकर रखे । 🙏🏻✍️🙏🏻
क्योंकि हर वोट कीमती होता है और वोट से ही तय होता है कि जैन तीर्थ की बागडोर सुरक्षित हाथों में रहेगी या सिर्फ दिखावे के हाथों में… ✍️
निवेदन -:जागरूक जैन तीर्थ रक्षक
News By – Rahul Jain Noida