श्रीनीलकंठेश्वर मन्दिर का अपना अलग ही महत्व

Srineelkantheshwar temple has its own importance
Srineelkantheshwar temple has its own importance

बुन्देलखण्ड अनेक धार्मिक, साँस्कृतिक व ऐतिहासिक विरासत छिपाए हुए

वीर-भूमि बुन्देलखण्ड यूँ तो अपने कोख में अनेक धार्मिक, साँस्कृतिक व ऐतिहासिक विरासत छिपाए हुए है, जिनका अपना अलग ही महत्व है। कस्बा पाली स्थित भूत-भावन भगवान श्रीनीलकंठेश्वर मन्दिर का अपना अलग ही महत्व है। नौवीं-दसवीं सदी में चन्देलकालीन राजाओं द्वारा निर्मित यह प्राचीन मन्दिर लाखों श्रद्धालुओं की आस्था का केन्द्र है।

यही वजह है कि वर्ष भर यहाँ शिवभक्तों का ताँता लगा रहता है। यह मन्दिर अपनी कोख में हजारों वर्ष पुरानी संस्कृति व सभ्यता को छिपाए हुए है। आज श्रावण मास का दूसरा सोमवार है। ऐसे में आज दिन भर यहाँ भोलेनाथ के भक्तों का ताँता लगा रहेगा।

कस्बा पाली से 3 किमी. दूर विन्ध्याँचल पर्वत की सुरम्य श्रखलाओं पर घने वन में स्थित यह मन्दिर अपनी विशिष्टताओं के लिए संसार भर में विख्यात है। करीब 108 सीढिय़ों को चढ़कर मन्दिर तक पहुचा जाता है। मन्दिर में काले बलुवे पत्थर पर भगवान शिव की त्रिमुखी अद्भुत प्रतिमा के दर्शन होते है। इस प्रतिमा को नवमीं-दसवीं सदी में चन्देलकालीन राजाओं ने बनवाया था। इस शिखरविहीन मन्दिर का वास्तुशिल्प देखते ही बनता है।

Srineelkantheshwar temple has its own importance
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कस्बा पाली स्थित भूत-भावन भगवान श्रीनीलकंठेश्वर मन्दिर

प्रतिमा के ललाट विम्ब पर नवगृहों के साथ सृजक ब्रह्म, पालनहार विष्णु व कल्याणकारी शिव रूपायत है, जबकि प्रवेश द्वार पर नीचे शिलाखण्ड पर पुष्ट हाथी व सिंह की आकृति को बड़े ही कलात्मक ढग से उकेरा गया है।

मन्दिर के द्वार पर खजुराहो शैली के चित्र भी देखने को मिलते है। मन्दिर में भगवान शिव की त्रिमुखी प्रतिमा के नीचे फर्श पर एकमुखी ज्योतिर्लिग स्थापित है। शिव भक्त इसे भगवान भोलेनाथ के अ?र्द्धनारीश्वर स्वरूप मानते है।

त्रिमुखी महेश प्रतिमा व एकमुखी च्योतिर्लिग को हिन्दू धर्मशात्रों व पुराणों में विशेष महत्व का बताया गया है। प्रतिमा के पृष्ट भाग में कैलाश पर्वत को दर्शाया गया है। दाँयी ओर भगवान शिव डमरू बजाते व हलाहल पीते दर्शाए गए है।

बीच में विराट स्वरूप सदाशिव निमग्न मुद्रा में दायें हाथ से रुद्राक्ष की माला से जाप कर रहे है और बायें हाथ में श्रीफल लिए है। बामभाग में माँ पार्वती का श्रगाररत स्वरूप रूपायत है, जो अपने एक हाथ में त्रिशूल लिए हुए है। इस अद्भुत प्रतिमा के कुल आठ हाथ दर्शाए गए है।

जिनमें दण्ड, हलाहल, डमरू, माला, आइना, बिन्दी, त्रिशूल और श्रीफल धारण किया हुआ है। कुछ श्रद्धालु इस त्रिमुखी प्रतिमा को ब्रह्मा, विष्णु, महेश के रूप में मानकर भी पूजते है। प्रतिमा के तीनों मुखों के कानों में कुण्डल है, सुन्दर केश विन्यास है व बाजूबन्धों को पत्थर पर बड़े ही कलात्मक ढग से उकेरा गया है। मूर्ति को पूर्वोन्मुखी इस प्रकार बनाया गया है कि प्रात: सूर्य की पहली किरणें इसी प्रतिमा पर पड़ती है।

Srineelkantheshwar temple has its own importance
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कहते है कि मुगलकाल में जब औरगजेब की सेना ने इस ऐतिहासिक व पौराणिक प्रतिमा को खण्डित करने के लिए यहाँ आयी थी, तो एक सैनिक ने तलवार से प्रतिमा के दाँये भाग पर प्रहार किया था।

जिससे चोट लगे स्थान से दूध की धार निकल पड़ी थी। भोले बाबा का यह अद्भुत चमत्कार देखकर मुगल सेना इस महिमा को मन ही मन प्रणाम कर वहाँ से चली गयी थी।

मन्दिर के गर्भगृह के बाहर आँगन में नन्दी महाराज विराजे है। मन्दिर के पीछे हिस्से में एक दरार है। यहाँ सिक्का रखकर अंगुली से धकेलने पर पीछे खजाने में गिरने जैसी आवाज आती है।

चूँकि उक्त पैसा व्यर्थ जा रहा था, अत: इस दरार को बाद में बंद करा दिया गया। यहाँ बन्दर, लंगूर, हिरण, मोर व कई प्रकार के पशु-पक्षी स्वच्छन्द विचरण करते देखे जा सकते है।

मन्दिर की सीढिय़ों के किनारे एक शिव झरना भी है। जिसका पानी कभी नहीं सूखता। औषधीय गुणों से युक्त इस झरने का पानी कई असाध्य रोगों के लिए रामबाण है।

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बहुत कम लोग यह जानते होंगे कि यह मन्दिर ताँत्रिक सिद्धि की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। मन्दिर के आसपास दुर्लभ जड़ी-बूटियों का भी अथाह भण्डार है। महाशिवरात्रि, गुरूपूर्णिमा, मकर संक्रान्ति पर यहाँ मेले का आयेाजन होता है।

यूँ तो वर्ष भर यहाँ धार्मिक व साँस्कृतिक कार्यक्रम होते रहते है, लेकिन सावन व भादों के महीने में यहाँ धार्मिक अनुष्ठान व अभिषेक आदि के कार्यक्रम होते रहते है। मन्दिर के पास ढबुआ आश्रम में कलयुग की जागृत शक्ति हनुमान जी का मन्दिर है।

समीप ही सीतामणी आश्रम भी स्थित है। मन्दिर से करीब 5 किमी. दूर घने जंगल में भगवान नृसिंह की विन्ध्याँचल पर्वत में बनी करीब 60 फीट ऊँची प्रतिमा है। जिसका अपना अलग महत्व है। इस स्थान के नजदीक ही सिद्ध क्षेत्र पनया आश्रम भी है। इन सभी प्राचीन व धार्मिक विरासतों को सहेजने की आवश्यकता है।

करीब 30 वर्ष पूर्व जिस वक्त 70 व 80 के दशक में बुन्देलखण्ड में दस्यु गिरोहों की तूती बोलती थी, उस वक्त यह घने जंगल में स्थित प्राचीन मन्दिर डकैतों की शरण स्थली रहा है।

तत्कालीन दस्यु सम्राट मलखान सिंह, माधौं सिंह, मोहर सिंह, पूजा बब्बा, डाकू हसीना बेगम, पुतली बाई आदि डकैत मन्दिर व आसपास के जंगलों में शरण पाते थे।

दस्यु सुन्दरी फूलनदेवी भी डेढ़ वर्ष तक इसी स्थान पर छिपी रही थी। बुजुर्ग बताते है कि डकैतों ने कभी भी किसी श्रद्धालु को नहीं छेड़ा और ना ही उनसे लूटपाट की। यहाँ डकैतों ने भोलेनाथ की कठिन साधना कर कई सिद्धियाँ प्राप्त की। Srineelkantheshwar temple

सावन व भादो के महीने में इस मन्दिर का महत्व कुछ ज्यादा ही बढ़ जाता है। शिवभक्त यहाँ आकर भोलेनाथ के दरबार में माथा टेकते हैं। यही नहीं भोलेनाथ का भव्य अभिषेक भी किया जाता है। नीलकण्ठेश्वर भगवान की त्रिमुखी प्रतिमा के नीचे शिवलिंग में कलात्मक ढग से मुख उकेरा गया है।

श्रद्धालु इसे भगवान शिव के अ?र्द्धनारीश्वर रूप में पूजते है। श्रावण माह में इस शिवलिंग का अभिषेक करने का विशेष पुण्य माना जाता है। यही वजह है कि सावन व भादों के महीने में यहाँ दिन भर श्रद्धालुओं की भारी भी लगी रहती है।

source – shivprabha

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