_आगरा (मनोज नायक) देव-शास्त्र गुरु के समक्ष जो कुर्सियों, स्टूल पर बैठते है इनके अभी तो घुटनो में दर्द है । बाद में इनकी रीढ़ की हड्डी भी गायब होगी । क्योंकि पीछे बैठने वाला तुम्हे बद्दुआये देता है कि ये सामने बैठ गया, यानी तुम्हारी रीढ़ की हड्डी खोखली हो गयी। जिस एंगिल से तुम्हे बद्दुआ आएगी, वही एंगिल तुम्हारा खराब हो जाएगा। वास्तु शास्त्र में लिखा है कि यदि भगवान के सामने सीढ़ी उतर रही है तो वहाँ न चढ़े क्योंकि भगवान के सामने तुम्हारा पैर उतर रहा है और बढ़ेगा तो अशुभ की कोटि में लिया है । उक्त उद्गार निर्यापक श्रमण मुनिपुंगव श्री सुधासागर जी महाराज ने आगरा में धर्मसभा को संबोधित करते हुए व्यक्त किए ।
मुनिश्री ने साधर्मी बंधुओं को संबोधित करते हुए कहा कि मुझे इसलिए तकलीफ नही है कि मेरा अपमान हो रहा है, मुझे इसलिए तकलीफ है कि आपके घुटनो की तकलीफ और बढ़ जाएगी फिर ऑपरेशन भी करोगे तो सफल नही होगा क्योंकि तुम भगवान और गुरु के सामने पैर लटकाकर के बैठे थे। कल के दिन तुम कहोगे कि मेरा लाइलाज है, ऑपरेशन भी करा लिया ठीक ही नही हो रहा है, कभी तुम भगवान और गुरु के आगे पैर लटकाकर के बैठे होंगे।_
कुर्सी पर यदि तुम बीच मे बैठ जाओगे, पीछे कोई तुम्हारे है तो निश्चित समझना आपको मेरी बात पर संदेह हो, एकाध महीने करके देख लेना आपकी रीढ़ की हड्डी में तकलीफ चालू हो जाएगी क्योंकि आप किसी को पीठ करके बैठे है। कई बार कूलर के आगे मोटे आदमी कुर्सी डालकर बैठ जाते है, कूलर पूरे लोगो को रखा था अब वो सामने बैठ गया, जितने एंगल में आपने रोका है, कल तुम्हारा ऐसा ब्लड प्रेशर बढ़ेगा कि ए.सी में भी तुम्हे पसीना आना शुरू हो जाएगा, ब्रेन हेमरेज होगा क्योंकि तुमने कितने लोगों का सुख छीना है। तुम्हारा व्यक्तिगत कूलर हो तो बात अलग है।
इन सभाओं में बहुत सावधानी रखा करो नही तो छोटी छोटी बाते तुम्हारे लिए लाइलाज कर देगी। पहले तो ईमानदारी बर्तो। फिर मजबूरी है तो कुर्सी टेबल पर बैठ सकते हो लेकिन जोड़ा है इसका, कुर्सी पर अकेले बैठने की अनुमति नही है, सामने टेबल भी होना चाहिए और उस पर टेबल क्लॉथ भी जिससे पैर टेबल के अंदर चले जायें, फिर बैठो न आराम से।
देव -शास्त्र-गुरु के सामने जब तुम प्रवचन सुनने या पूजा करने बैठो तो घुटनो से नीचे का हिस्सा, सिर के बाल, कोहिनी से ऊपर का हिस्सा कभी मत दिखाना महानुभाव ये दरिद्रता की निशानी है। देव-शास्त्र-गुरु के सामने अपने पैरों के पंजे जिस समय प्रवचन चल रहा हो, स्वाध्याय कर रहे हो अपने पैरों को क्लोज कर सकते हो करो। सिर कभी खुला नही होना चाहिए भगवान की पूजा- अभिषेक के समय, साधु के आहार के समय।