साम्यवादी मान्यता में धर्म को जनता के लियें अफीम मानते हैं

Big accident, women and children were badly crushed, the number of dead is said to be 122, the soldier got a heart attack after seeing the dead bodies.
Big accident, women and children were badly crushed, the number of dead is said to be 122, the soldier got a heart attack after seeing the dead bodies.

साम्यवादी मान्यता में धर्म को जनता के लियें अफीम मानते हैं। उनके अनुसार धर्म समाज में उन कष्टो और असमानताओं क़ो बनाएं रखने में मदद करता हैं,जो शोषित वर्ग अनुभव करता हैं। उनके लियें धर्म ऐसी प्रणाली हैं,जो लोगों क़ो उनके वास्तविक हालात से भटकता हैं,और उन्हें संघर्ष करने के बजाय अपनी दुर्दशा क़ो सहन करने के लियें प्रेरित करता हैं।

2 जुलाई क़ो हाथरस जिले के सिकंदराऊ थाना क्षेत्र के फूलरई में सूरजपाल नारायण साकार हरि उर्फ़ भोले बाबा के सतसंग में मची भगदड़ और वहाँ आयी जिस तरह की भीड़ के विशाल आकार व उनकी आर्थिक एवं सामाजिक स्तिथि से यह सच साबित होता हैं कि भारत में निम्न वर्ग में धर्म नशे की तरह अपने पैर पसार रहा हैं। यह स्थिति केवल इस बाबा में ही नहीँ अपितु इनके जैसे अनेकों अनेक बाबाओं में बनती जा रही हैं। चाहे वह शहर में हो या चाहे वह गाँव में हो। हर जगह का अशिक्षित गरीब, धर्मभीरू, डरपोक और भविष्य के प्रति आशंकित, असुरक्षित व्यक्ति यहाँ अपनी समस्याओं का हल ढ़ूढ़ने जाता हैं।

वहाँ उनकों उनकी समस्याओं का हल मिलता भी हैं। जैसे की कोई नेता वोट देनें के बाद गरीबों क्या?अमीरों क़ो भी मुँह नहीँ दिखता हैं। नाहीँ किसी शिक्षा के मंदिर में इन लोगों क़ो भाव मिलता हैं। नाहीँ ये मध्य आयु वर्ग के लोग फंतासी जैसे मॉल,टॉकीज, महगें होटल, महँगा पर्यटन ,नाहीँ आलिशान घरों की सूरत आदि भी देख पाते हैं। यहाँ इन लोगों क़ो मुफ्त रोटी या भंडारा शानोओं शोकतवाले महलनुमा आश्रम और उनमें विराजे राजाओं की तरह ये बाबा खूब लुभाते हैं। इनके लफ्फबाजी में धार्मिक पुट होनें से ये अपने राम क़ो भूल कर इनके भक्त बन जाते हैं। राम शायद अपने कर्मो का फल गिन गिन कर दें। पर यहाँ तो उन्हें सीधे राम से मिलने और उनसे फ़ायदा उठाने का मौका मिलता हैं वह भी बिना किसी त्याग तपस्या के। यह सरल हैं कि उन्हें केवल भीड़ का हिस्सा बनना पड़ता हैं बस। यह भीड़ बेरोजगार हैं। जिन्हे सरकार या अपने अधिकार या किसी अन्य विषयों पर जानकारी जीरो है। उनका धर्म और विलासिता दोनों यहीं पर हैं जो उनके लियें सस्ता और सुलभ हैं।

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दूसरी तरफ इन बाबाओं क़ो राजसी सुख और आनंद की अनुभूति से न केवल इनका अहं शांत होता हैं बल्कि भीड़ क़ो खींचने के गुण की वजह से नेताओं, सरकार और बड़े बड़े व्यापारियों तक का संरक्षण उन्हें मिलता हैं। ये लोग वोट बैक भी तो हैं।अतः इन नेताओं और पुलिस वालो आदि क़ो केवल इन बाबाओ क़ो साधना भर होता हैं। यह एक गोरख धंदा हैं,आयोजक भीड़ क़ो आमंत्रित करते हैं।अनियंत्रित भीड़ ऐसे आयोजना का प्रमुख लक्ष्य रहता हैं। जिससे साबित किया जा सके कि कौनसा बाबा कितना प्रसिद्ध हैं । भीड़ से यह साबित हो भी जाता हैं कि बाबा की कितनी ख़्याती हैं। पर सच तो यह हैं कि यहाँ भीड़ का आकार और प्रकार उसकी सब पोल खोल देता हैं।

हाथरस की इस घटना में काफ़ी लोगों की दर्दनाक मौत हुई हैं। कई लोग लापता एवं कई लोग घायल अवस्था में पाये गये। इसीलियें यह लॉ एंड आर्डर का विषय चर्चा में बना हैं। नहीँ तो अभी भी ऐसे कई बाबा हैं, जो अपना सम्राज्य फैला कर बैठे है । इन सब बाबाओ के विरुद्ध सख्त क़ानून पास कर दिया जाय तो कितनी ही जनता या मानव श्रम देश क़ो सुलभ हो सकता हैं। यह भीड़ अशिक्षित हो सकती हैं लेक़िन सभी भीड़ ऐसी हो ऐसा नहीँ हैं। इनसे अच्छा काम और सदुपयोग भी लिया जा सकता हैं।

भारत विशाल जनसंख्या वाला विकासशील अर्थव्यवस्था देश हो सकता हैं। आय के मोके बढ़े भी हो,फिर भी एक तबका ऐसा हैं जिसे सरकार स्वयं कमजोर रखना चाहती हैं, या उन तक पहुँच ही नहीँ पाती। उनके पास संसाधनों की कमी हैं। इसलिए इनके लियें इनके पास पांच किलो अनाज के अलावा कोई योजनाएं नहीँ हैं। वें इन्हे वोट बैंक की तरह देखते हैं, और वो वाकई वोट बैक ही हैं।यह पूरा पूरा का मसला शिक्षा का हैं। शिक्षा हो तो नाहीं ऐसी भीड़ जुटे और नाहीं यह भक्त यह कहनें की हिम्मत कर पायेंगे कि इसमें बाबा का कोई दोष नहीँ हैं ,इनकी मौत तो बस किस्मत ने लिखी थी। इनके भक्त बाबा क़ो गुनहगार नहीँ मानते। यह क़हना गलत नहीँ होगा कि ऐसी परम्पराओं क़ो महिलाएं ज़्यादा तवज्जो देती हैं, नहीँ तो मरने वाली ज़्यादा से ज़्यादा भीड़ महिलाएं ही क्यों हैं। वें भीड़ में सबसे बड़ा हिस्सा क्यों हैं? जिसे इस तरह मौत के मुँह में धकेल दिया जाता है। वें बस मौत का आकड़ा भर बन कर रह गई हैं.।

sangeeta

संगीता सनत जैन
9424552250

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