हुकमचंद मिल के 6 हजार श्रमिकों से धोखा, हाईकोर्ट सख्त-दिया 28 नवम्बर तक का वक्त


इंदौर। 12 दिसम्बर 1991 से बंद हुक मचंद मिल के श्रमिकों से सरकार ने फिर धोखा कर दिया है। उन्हें वादे के बावजूद राशि नहीं मिली। इस पर हाईकोर्ट ने सरकार को 28 नवम्बर तक बकाया भुगतान के आदेश दिए और कहा कि सरकार ने भुगतान नहीं किया तो फिर कोर्ट जमीन की नीलामी करवाएगी।
उल्लेखनीय है कि श्रमिकों को कुल 229 करोड़ रुपए लेना थे जिसमें से 50 करोड़ रुपए का भुगतान एक बार शासन कर चुका है। बचे 179 करोड़ में से 174 करोड़ रुपए हाऊसिंग बोर्ड देने का लिए तैयार हो गया जबकि 44 करोड़ रुपए ब्याज के शासन देने पर राजी हुआ है। ब्याज के 88 करोड़ रुपए होते हैं लेकिन श्रमिक आधी राशि पर मान गए। वादा था कि दीपावली के पूर्व ये पैसा श्रमिकों को दे दिया जाएगा लेकिन 32 सालों से निराशा के भंवर में डूबे श्रमिकों को फिर निराशा ही हाथ लगी। हाई कोर्ट ने अपने आदेश में सरकार/हाउसिंग बोर्ड को 28 नवंबर तक का समय देते हुए कहा कि इस अवधि तक भुगतान को लेकर वह चुनाव आयोग की अनुमति से लेकर बोर्ड बैठक और अन्य औपचारिक प्रक्रिया पूरा करने में असफल रहता है तो कोर्ट अपना 20 अक्टूबर 2023 को जारी आदेश वापस ले लेगी और सरकार/बोर्ड को कोई और अवसर नही देते हुए मिल की जमीन कंपनीस एक्ट के कानून के मुताबिक नीलाम की जाएगी। जस्टिस सुबोध अभ्यंकर की बेंच ने उक्त आदेश जारी किया। हाईकोर्ट ने 20 अक्तूबर को अपने आदेश में दो सप्ताह में मजदूरों सहित अन्य का बकाया भुगतान करने की प्रक्रिया शुरू करने को कहा था लेकिन सरकार/हाउसिंग बोर्ड) की ओर से पेश आवेदन में विधानसभा चुनाव के चलते चुनाव आयोग की अनुमति और बोर्ड बैठक का हवाला देते हुए कोर्ट से भुगतान के लिए 45 दिन का समय मांगा। कोर्ट ने इस पर नाराजगी जताई थी और भुगतान के संबंध में इंस्ट्रक्शन लेने के निर्देश देते हुए कल सुनवाई रखी थी। कल सरकार/बोर्ड की ओर से शपथपत्र देकर चुनाव आयोग की अनुमति और बोर्ड बैठक न होने की बात दोहराई। परिसमापक, मजदूरों आदि पक्षकारो की ओर से इस पर आपत्ति ली गई। सभी के तर्क सुनने के बाद कोर्ट ने उक्त आदेश दिए। अगली सुनवाई 29 नवंबर को होगी।
नीलामी की पूर्व में हो चुकी कोशिश
जमीन नीलामी की पूर्व में कोशिश हो चुकी है लेकिन वो असफल रही। कई कंपनियां आई और उन्होंने जमीन भी पसंद की लेकिन तमाम सरकारी अडंग़ों के कारण खरीदी नहीं। बाद में हाऊसिंग बोर्ड राजी हुआ जिसने कहा कि वो यहां आवासीय प्रोजेक्ट लाएगा। 179 में से 5 करोड़ रुपए कम करके 174 करोड़ रुपए देने पर राजी हो गया लेकिन फिर पेंच फंस गया।
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